करोड़ो लोगों के टूटते सपने
आज के जमाने में सभी का अपना एक आशियाना बनाने का सपना होता है। इसी सपनंे को लेकर लोग दिन-रात मेहनत करके व अपनी जरूरतों को गला घोटकर अपने आशियाने को बनाने में लगे रहते है। लेकिन यह सपना करोड़ों लोगों के लिए ताउम्र सपना ही बना रह जाता है। वर्तमान समय में जमीन, मकान या फ्लैट की कीमत इतनी अधिक है कि आम लोगों के लिए मकान खरीदना लगभग नामुमकिन है। कर्ज लेकर लोग फ्लैट जरूर खरीद रहे हैं। लेकिन बार कर्ज लेने के बाद कर्जदार की जिंदगी किस्तों में बंट जाती है। खुलकर जीवन नहीं जी पाते हैं। छोटी-छोटी खुशी को पूरा करने के लिए भी समझौते करने पड़ते हैं। हालांकि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने 2022 तक सभी को मकान उपलब्ध कराने का वायदा किया है। लेकिन यह लक्ष्य पूरा करना संदेह से परे नहीं है और यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि लोगों के आशियाने के सपनें पूरे हो भी पाएंगे या नही। हर जगह रियल एस्टेट की कीमत में उफान आया हुआ है। ऐसे में सवाल का उठना लाजिमी है, क्या वाकई में मकान, फ्लैट या जमीन की कीमत इतनी बढ़ी है, या कम कीमत वाले फ्लैट या जमीन की कीमत बढ़ा-चढ़ा कर बताई जा रही है। दो राय नहीं कि लोगों की आय में इजाफा हुआ है। लेकिन आय में इतनी भी बढ़ोतरी नहीं हुई है कि नौकरीपेशा कर्मचारी या मध्यम स्तर का कारोबारी करोड़ों का फ्लैट या जमीन खरीद सके। रियल एस्टेट में दलाली प्रथा के कारण ही विभिन्न शहरों में बिना बिके आवासीय परिसरों और वाणिज्यिक एस्टेट की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बिना बिके मकानों, फ्लैटों और दुकानों की संख्या हाल में 20 से 40 प्रतिशत बढ़ी है। जिसमें सबसे ज्यादा संख्या दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में है। इस क्रम में मकान एवं दुकानों के दाम तथा ब्याज दर घटने के बावजूद फ्लैट की मांग में 30 से 35 प्रतिशत की गिरावट आई है। जबकि पिछले साल दिल्ली.राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वाणिज्यिक क्षेत्र की मांग 40 से 45 प्रतिशत घटी थी। मुंबईए ठाणो और अन्य उपनगरीय इलाकों में भी बिना बिके मकानों और दुकानों की संख्या बढ़ी है। बेंगलुरु और चेन्नई में भी बिना बिके आवासीय परिसर में तेजी आई है। मुंबई में बिना बिके मकानों की संख्या 30.5 प्रतिशत है। बेंगलुरु में 30 प्रतिशत, चेन्नई में 24.5, अहमदाबाद में 20, पुणो में 18.5 और हैदराबाद में 18 प्रतिशत है। आवासीय परिसरों में सबसे ज्यादा बिना बिके मकान दिल्ली.एनसीआर में है। दूसरे स्थान पर मुंबई है। जहां तकरीबन एक लाख मकान नहीं बिक रहे हैं। बेंगलुरु में 67 हजार, चेन्नई में 62 हजार और पुणो में 55 हजार मकान बिना बिके हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में करीब ढाई लाख मकान बिना बिके हैं। यह संख्या निर्माणाधीन मकानों की कुल संख्या का करीब 30 प्रतिशत है। इन मकानों में नियामकीय मंजूरी और विवाद की वजह से देरी हो रही है। रियल एस्टेट में मंदी का सबसे ज्यादा असर इससे जुड़े वित्तीय सेवा तथा इस्पात क्षेत्र पर पड़ा है। फिलहाल, बिल्डरों का लक्ष्य पहले से बने मकानों को बेचने और लंबे समय से अटकी पड़ी परियोजनाओं को पूरा करने की तरफ है। देखा गया है कि बिल्डर लागत की दोगुनी कीमत वसूलते हैं। जमीन का क्षेत्र तो और भी ज्यादा स्याह है। हाल में सरकार ने कानून बनाकर बिल्डरों के पंख कतरने की कोशिश की हैए लेकिन सरकार की कवायद प्रभावशाली नहीं रही है। आज रियल एस्टेट काली कमाई को सफेद बनाने का मुफीद क्षेत्र बना हुआ है। भले ही बड़े शहरों में बड़े बिल्डर चेक से पेमेंट ले लेते हैं। लेकिन छोटे शहरों जैसे पटना, लखनऊ, भोपाल, रायपुर, चंडीगढ़ आदि शहरों में अभी भी बिल्डर मकान की कीमत चेक और नकद में वसूलते हैं। जो भी हो, रियल एस्टेट एक ऐसा क्षेत्र है। जिससे सभी लोग जुड़े हैं। देश की अर्थव्यवस्था को तेजी देने में इस क्षेत्र का अहम योगदान है। इसमें दो मत नहीं कि मकानों की ज्यादा कीमत होने के कारण वे बिक नहीं पा रहे हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि इस क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं एवं विसंगतियों को दूर करने के प्रयास किए जाएं। इस दिशा में कारगर कानून बनाए जाएं और उन्हें अमलीजामा पहनाया जाए ताकि सभी को मकानए रोजगार सृजन में तेजीए विकास दर में इजाफा, अर्थव्यवस्था में मजबूती आदि संभव हो सकें।
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