खाकी का खौफ ?
हरियाणा में अपराधियों का दुस्साहस इस कदर बढ़ता जा रहा है कि दिनदहाड़े लूटपाट, हत्या, छिनैती, अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। जिस प्रदेश में अपराधियों के मन से कानून का भय इस कदर समाप्त हो चुका है वहां आम आदमी की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश में लगातार अपराध बढ़ते जा रहे हैं और आम नागरिक सरेआम लुट रहे हैं। यदि प्रदेश में कोई सुरक्षित है तो यह उसकी किस्मत है या अपराधी उस पर रहम कर रहे हैं। पुलिस की साख का इससे कोई मतलब नहीं।
निश्चित रूप से देश व समाज में इसका प्रतिकूल संदेश जा रहा है और हरियाणा की छवि एक कमजोर कानून व्यवस्था वाले प्रदेश की बनती जा रही है। इसका सीधा असर प्रदेश के विकास पर भी पड़ रहा है। कोई भी निवेशक ऐसे प्रदेश में निवेश करने से कतराता है जहां की कानून व्यवस्था कमजोर हो। यह बात भी सामने आई है कि आए दिन होने वाली लूट की घटनाओं से तंग आकर श्रमिक भी हरियाणा से मुंह मोडऩे लगे हैं। यह ठीक है कि पुलिस प्रशासन अपराध पर नकेल कसने के लिए अपने स्तर पर हर उपाय कर रहा है, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि उसके प्रयासों में कहीं न कहीं कोई कमी जरूर है अन्यथा इस प्रकार से अपराधियों का दुस्साहस कदाचित नहीं बढ़ा होता कि वे पुलिसकर्मियों पर ही हमलावर हो जाएं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गुंडो पर सख्ती बरती जा रही है । जिसके चलते यूपी के बदमाश हरियाणा में शरण ले रहे है। पिछले कई दिनों में पुलिस ने ऐसे बदमाशों को दबोचा है जिनका संबंध उत्तर प्रदेश से है या उत्तर प्रदेश के रहने वाले है। ऐसे में पुलिस के लिए चुनौती और भी बडी हो गई है। हालांकि पुलिस ने गत दिनों में कई अपराधियों को पकडा जरूर है लेकिन उसके बावजूद प्रदेश में खाकी का खौफ नजर नहीं आ रहा।
अब आखिर ऐसा क्या हो गया कि मामूली अपराधियों के मन से भी पुलिस का भय समाप्त होता जा रहा है। निश्चित रूप से पुलिस प्रशासन को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा और अपनी कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। जब तक अपराधियों के मन में कानून का डर नहीं होगा तब तक अपराध पर लगाम की कल्पना नहीं की जा सकती है। सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए क्योंकि जनता को भयमुक्त समाज उपलब्ध कराना उसकी भी प्राथमिक जिम्मेदारी है। यह सच है कि हर दरवाजे पर सुरक्षा के लिए पुलिस नहीं हो सकती, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि पुलिस की कार्यप्रणाली में कहीं ना कहीं बड़ी चूक है। अब सारा दायित्व पुलिस का है कि किस तरह विश्वास की बहाली हो, अपराध तंत्र की जड़ों पर प्रहार किए बिना कानून- व्यवस्था की गरिमा की रक्षा करना संभव नहीं। सबसे पहले पुलिस को यह पता लगाना होगा कि अपराधियों के कितने शुभचिंतक खाकी वर्दी में हैं। अपराधी के स्थानीय संपर्क सूत्रों की भी पहचान करनी होगी। पुलिसकर्मियों की काउंसलिंग करके उनका मनोबल ऊंचा रखना बेहद जरूरी है। शीर्ष अधिकारी नियमित अंतराल पर सभी शहरों का दौरा करें तो अपराधी निश्चित तौर पर भयभीत होंगे।
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