बंजर भूमि पर विशेष तकनीक से उगा रहे सब्जियां
बंजर जमीन से विशेष तकनीक से सोना निकालना उत्तर प्रदेश के किसानों को ही आता है। तकरीबन सौ परिवार इन दिनों कठुआ से लेकर अखनूर तक के नदी नालों पर अपना डेरा जमा चुके हैं और सूखी जमीन को सब्जियों की खेती के लिए तैयार करने में जुट गए हैं। सर्दियां गुजरते ही इनकी सब्जियां सबसे पहले मंडी में पहुंच जाएंगी और जिससे इनको मोटा मुनाफा होगा। अखनूर, तोप, सुम, अरनिया, सांबा, बडेयाल, कठुआ क्षेत्रों के नदी नालों पर इसी तर्ज से खेती कर घिया,कद्दू, टमाटर, खीरा, तरबूज आदि की पैदावार की जाती है। इस खीर को रीवर बेड का नाम दिया गया है। तवी नदी किनारे बडेयाल ब्राह्मणा में बरेली से आया अली हुसैन का परिवार 60 हेक्टेयर भूमि पर सब्जी लगाने को तैयार है। अली हुसैन का कहना है कि इस तकनीक से कम पानी में और समय से पहले सब्जियां तैयार की जा सकती है। कैसे की जाती है रिवर बेड की खेती : दरअसल तवी या चिनाब नदी के किनारे बेकार पड़ी जमीन को पट्टे पर लिया जाता है। भूमि के उसी भाग की खुदाई होती है जिसमें पौधा लगाना होता है। यानि हर छह फुट के बाद महज एक फुट गहरी व डेढ़ फुट चौड़ी पट्टी बनाई जाती है और यह जगह पौधे के लिए तैयार की जाती है। बाद में सब्जियों के पौधे रोप दिए जाते हैं। पट्टी के एक सिरे में तब तक गहरा गड्ढा किया जाता है जब तक कि जमीन से पानी न आ जाए। इसी पानी के रिसने से पौधों को नमी मिलती है और पौधे बड़े होते हैं। जैसे-जैसे पौधे बड़े होते हैं ऐसे ही पट्टी में मिट्टी भर दी जाती है। वहीं, ठंड से पौधे बचे रहें, इसके लिए सरकंडे घास से या पॉलीथिन से पौधों को तब तक ढांपा जाता है जब तक कि ठंड का दौर निकल न जाए। स्थानीय लोग होने लगे प्रेरित, कमा रहे मुनाफा : उत्तर प्रदेश के किसानों से सीख लेकर स्थानीय लोग भी रीवर बेड की खेती करने लगे हैं। क्योंकि उनको भनक लग गई है कि इस तकनीक से अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। सौहांजना के किसान रूप चंद दो कनाल भूमि में खीरा लगाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले साल इतने ही क्षेत्र में खीरा लगाया और उनकी आमदनी में 20 हजार रुपये की बढ़ोतरी हुई। सबसे बड़ा फायदा कि सब्जियां अन्य किसानों से माहभर पहले तैयार हो जाती हैं और बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं। वहीं, सौहांजना के ही किसान जोगिंद्र लाल ने पिछले साल पांच कनाल भूमि में खीरा लगाया और अच्छा मुनाफा भी कमाया। उन्होंने बताया कि इस तकनीक से खेती करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि खाद और पानी उसी जगह लगता है जहां पौधा होता है। चूंकि जिस जगह बेलें फैलती हैं, वह जगह सूखी रहती है, इसलिए फल खराब नहीं होता। कुल मिलाकर इस तकनीक से 40 से 50 फीसद पैदावार बढ़ जाती है। अन्य किसानों को इसी तरह से सब्जियां लगानी चाहिए। अलोरा गांव के किसान बबी चौधरी ने पिछले साल तरबूज की खेती इसी पद्धति से की और भरपूर पैदावार प्राप्त की। उन्होंने बताया कि 16 कनाल भूमि से तकरीबन 250 क्विंटल माल निकाला। अगर यह खेती आम खेती की तरह की जाती तो पैदावार महज 100 से 120 क्विंटल ही रहती। इसलिए रिवर बेड की खेती की तकनीक बाकी के किसानों को भी अपनानी चाहिए। इससे समय की बचत तो होती ही है और फायदा भी दोगुना हो जाता है। वह इस बार भी तरबूज की खेती करेंगे।
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