खिसकता जा रहा है जनता का लोकतंत्र से विश्वास
खिसकता जा रहा है जनता का लोकतंत्र से विश्वास सतबीर भारद्वाज की कलम सेनौकरशाह क्यों भारी पड़ रहे हैं नेताओं पर। हरियाणा के अंदर जनप्रतिनिधि को जनता चुनती है और वोट की ताकत से फैसला होता है, लेकिन जनप्रतिनिधि की आवाज को अधिकारी नहीं सुनते तो आम का विश्वास टूटता है। उन बेचारों का वोट डालने पर विश्वास ही टूट जाएगा। फिर क्या फायदा ऐसे लोकतंत्र का, जिसमें जनता के चुने प्रतिनिधियों की नहीं सुनी जाती हो। या तो फिर जनप्रतिनिधि को ऐसे में त्याग पत्र दे देना चाहिए।हरियाणा में एक नहीं खिस्से सामने आ रहे हैं। पिछले महीने आधा दर्जन विधायक सीएम से नाराज हो गए थे। सरकार डगमगाते देख सीएम खट्टर साहब जाग गए थे और अपने विधायकों की चाय की चुस्की के साथ मनाने की कोशिश की थी और कामयाब भी हुए थे। उस समय हरियाणा की राजनीति में चर्चा थी कि सीएम साहब ने पीएचडी कर ली है, लेकिन एक बार फिर सीएम के कई मामले सामने आ रहे हैं कि उनकी सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। विधायकों में आज भी रोष है और सरकार में भी गुटबाजी है। यही वजह है कि भाजपा हाईकमान कविता जैन को सीएम बनाने पर विचार कर रहा है। क्योंकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं ऐसे मेें सरकार किस आधार पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन इतना जरूर बताएंगे कि वास्तव में जनता ही नहीं अब मोदी सरकार भी इस बात को लेकर चिंतन करने लगी है। मोदी साहब आपके नाम की जयकार तो हो रही है और जनता भी गुणगान कर रही है इसमें कोई दो राय नहीं। अब गुजरात के बाद हरियाणा की बारी है। जनता यह भी पूछेगी कि पांच साल तक आपके सीएम की अधिकारियों के सामने क्यों नहीं चली। जनप्रतिनिधियों के काम क्यों नहीं हुए। बेचारे जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ेंगे तो किस आधार पर लड़ेंगे। लेकिन कई नेता तो बचारे ऐसे हैं सीएम के साथ ही फोटो खिंचवाकर अधिकारियेां को दिखाना चाहते हैं कि वे सीएम के खास हैं। लेकिन आज खट्टर सरकार के अंदर नौकरशाह बेलगाम हो गए हैं। गुरुग्राम में ही हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष के आदेशों की धज्जियां उड़ी है। जो जनता की चुनी हुई और लोकतंत्र की रक्षक हैं ऐसे नेता का सम्मान नहीं करना पुलिस विभाग के लिए भी शर्म की बात है।बेचारी विधानसभा की उपाध्यक्ष एक गरीब को न्याय दिलाने की बात कर रही थी। लेकिन गरीब को न्याय तो नहीं दिला पाई । लेकिन फोन करके थक चुकी है। अब वो जनता को क्या बताएगी कि मैं वोट किस आधार पर मांगू। अब आप ही बताएं कि नौकरशाह भारी पड़ रहे हैं नेताओं पर, क्या हरियाणा विधानसभा की गरिमा को ठेस नहीं पहुंची। इससे ज्यादा जनप्रतिनिधियों की क्या थू-थू होगी। लेकिन यह बड़े दुख की बात है, शर्म आनी चाहिए ऐसे अधिकारियों को जो जनप्रतिनिधियों की लाज नहीं रखते।
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